नया सबेरा नेटवर्क
पूछो उन दीवानों से उनपे क्या गुजरती है,
किसी जवां लड़की की ओढ़नी जब सरकती है।
रात के फिर ख्वाबों में मंजर जब याद आता है,
दिल के सन्नाटे में वो रिश्ता कैसे बुनती है।
कुछ पल के लिए ही सही, वो मुस्कुरा देती है,
ज़िन्दगी के पन्ने में वो रंग कैसे भरती है।
वो घड़ी कब आएगी, जिसकी ये जवानी है,
रस से भरी डालें, अब ख्वाब से लचकती हैं।
नींद भी नहीं आती, और चैन भी नहीं आता,
ये कैसी प्यास है कि जो रोज -रोज बढ़ती है,
कहीं मुरझा न जाएँ ये खिलती मन की कलियाँ,
भार लेके यौवन का,वो सांस भी तो थकती है।
देर तक नहीं टिकते,ये मौसम कभी जवानी के,
गरम -गरम उन सांसों को रात रोज डसती है।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई,
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