उत्तर प्रदेश में विन्ध्याचल पहाडियों की श्रृंखला से घिरा हुआ एक जिला है सोनभद्र जो पूरे भारत में कोल व विद्युत आपूर्ति तथा प्राकृतिक सुषमा के लिए प्रसिद्ध है।भारत का प्रसिद्ध रिहन्द बांध इसी सोनभद्र जिले में है ।
इस जिल के उत्तर में चन्दौली, दक्षिण में मध्य प्रदेश, दक्षिण पूर्व में धारखण्ड, पूर्वोत्तर में विहार और पश्चिम में मिर्जापुर है।
सोनभद्र जिले में पहाडियों के आंचल में एक छोटा सा गांव है नाम है रामपुर इस गांव में छोटे तबके के किसान व मजदूर रहते हैं जो कृषि और मजदूरी करके अपने और अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं इसी गांव में "लोटन राम" का परिवार रहता है।जो पेशे से मजदूर है
और पशु पालन व मजदूरी करके अपने परिवार का खर्च चलाता हैं।
..... आकाश उनका बेटा है आज वो सालों बाद गाँव आने वाला है, लोटन राम ही नहीं पूरे गांव में खुशी का माहौल है,क्यौंकि उसे पूरा गांव ही बेटे की तरह मानता है और गांव में वह इकलौता अच्छा पढा लिखा आई आई टी इंजीनियर है और उसकी पोस्टिंग किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में मैनेजर पद पर हो गयी है नौकरी को दो वर्ष हो चुके हैं अभी वह अविवाहित है कम्पनी से उसे कार व ड्राइवर व व्यक्तिगत कामों के लिए नौकर भी मिला है। लोटन राम बहुत खुश हैं राज उनका बेटा गाँव आने वाला है उनको याद है कि जब आकाश का जन्म होने वाला था प्रसव का दिन था गांव की दाई प्रसूता के पास थी लेकिन धीरे धीरे सुशीला (लोटन की पत्नी) की हालत बिगडने लगी लोटन शहर अस्पताल वगैरह से अपरिचि बिचारे क्या करते,इस बात की खबर गांव के मुखिया को लगी उन्होंने आनन फानन में गाड़ी मंगवाई पैसे की जुगत की और स्वयं साथ में अस्पताल गए, वहां डाक्टरों ने बताया कि प्रसूता की हालत नाजुक है यदि जल्दी आपरेशन नहीं किया गया तो जच्चा बच्चा दोनों की जान जा सकती है बीस हजार आपरेशन शुरू होने के पहले चाहिए, इधर पैसे नदारद, लोटन ने कहा, मालिक मेरे बीवी बच्चों को बचा लीजिए, तुम चिन्ता मत करो लोटन...मुखिया अपनी ससुराल से मंगल मुहूर्त में मिली सोने की सिकडी गिरवी रखकर पैसा
लाए...खैर आपरेशन सफल हुआ और और जच्चा बच्चा सकुशल घर आए।और आज भी वो सिकडी गिरवी है।आकाश की पूरी पढाई का खर्च मुखिया ने उठाया और आज वह साहब बन गया है लोटन के साथ साथ मुखिया भी बहुत खुश हैं,लोटन की तन्द्रा भंग हुयी एक बच्चे ने आवाज दी काका-काका आपके गली के मुहाने पर एक कार आई है शायद ....आकाश भैया.... गाड़ी मुखिया के दालान के सामने फर्श पर रुकी थी गाडी का दरवाजा खुला उसमें से एक सुन्दर सूटेड बूटेड नौजवान, बाहर आया साथ में उसका नौकर और ड्राइवर।
गाड़ी को देखकर आकाश को देखने गांव के बहुत लोग जुट गये लोटन ने कहा 'बचवा ई मुखिया जी हैं इनका पैर छू ल। आकाश 'आई डू नाट नो एनी मुखिया । *बचवा इ तोहरे जनम और पढाई में बहुत मदद किए हैं ..
आकाश.. आई डे नाट नो ।
सारे गाँव वाले खुश, लोटन भी खुश कि बेटा अब इंगलिस भी बोलने लगा है।
मुखिया थोड़ा बहुत पढे लिखे थे वो अंग्रेज़ी थोड़ा समझते थे शांत खडे थे थोड़ी दूर। इतने में अन्दर से एक तेज तर्रार युवक रवि आया औ आकाश से बोला... व्हाइट यू मीन...ये मुखिया कौन मैं नहीं जानता और अपने मां बाप और गांव वालों के सामन अंग्रेज़ी झाड रहे हो, आकाश थोड़ा झेप गया और बोला... ये ठाकुर लोग हैं इन लोगोंं ने हमैशा पिछडे लोगों को दबाया है परेशान किया है....रवि.. अच्छा तो ये बात है....आकाश ने कहा... आप मुझे समझाने वाले कौन होते हो,
मैं रवि... तुम्हारी कम्पनी का इक्जक्यूटिव डाइरेक्टर अभी चार दिन हुआ ज्वाइन किए हुए यहां मामा (मुखिया ) का आशीर्वाद लेने आया हूँ इन्होंने ही मेरी पूरी
पढाई का बोझ उठाया है , यहां आकर लोटन चाचा से मालूम हुआ कि तुम भी मेरी ही कम्पनी में इंजीनियर हो, तुम्हारी तरह एहसान फरामोश थोडे ही हूं ।
कैसा ऐहसान? इन लोगों ने हम पिछडों को बहुत स...ता..या..
आकाश की मां सुशीला के सहन की सीमा पार हो गई उसने एक जोतदार थप्पड़ आकाश को मारा और कहा... तूं किसके लिए ये सब बोल रहा है इस गांव के भगवान के लिए,हर मजबूर और मजलूम की सहायता करने वाले के लिए, उस देवता के लिए जिसने तुम्हारे जन्म के समय अपनी मांगलिक सिकडी गिरवीरखकर हमारी तुम्हारी जान बचाई जो सिकडी आज भी गिरवी है, तुम्हारे पूरे पढाई का खर्च वहन किए और हम सीधे साधे गांव वालों के सामने अंग्रेजी झाड रहा है ये भगवान हैं भगवान अब आकाश की आंखे खुल चुकी थी... मुखिया के चरणों में गिर पडा... मुझे माफ कर दीजिए मेरे भगवान, मुखिया जी ने आकाश को गले लगा लिया
.... और दूसरे ही दिन गिरवी रखी सिकडी ले आया और मुखिया के चरणों में रख दिया। रवि ने उसे समझाया जैसा देश वैसा भेष... कभी ऐहसान फरामोश मत बनो...
आकाश.. गलती हो गई साहब... यहां साहब नहीं भैया कहो हम दोनों की ज़िन्दगी संवारनै वाले एक हैं इसलिए हम दोनों भाई हुए..........गलती हो गई भैया दर असर हमको बताया जाता है कि इन लोगोंं ने हम पिछडों को बहुत सताया है मन में एक दुराग्रह घर कर गया था जो सदा सदा के लिए साफ हो गया अच्छे इंसान हर जगह होते हैं जाति से कोई लेना देना नहीं है और जहाँ तक हिन्दी की बात है तो पद और प्रतिष्ठा पाकर मैं भूल गया था कि मैं अपने गाँव आया हूं और हिन्दी हमारी मातृभाषा है भैया मैं आज से हिन्दी ही प्रयोग करुंगा और सबको राय दूंगा कि जहाँ तक हो सके हिन्दी बोले अपने कार्य हिन्दी में ही करने का प्रयास करें।
तभी मुखिया जी ने कहा..रवि आकाश को साथ लेकर अन्दर जाओ खाना खाने तुम्हारी मामी बुला रहीं हैं ..दोनों अन्दर खाना खाने चले गए......
महेन्द्र सिंह "राज"
मैढीं चन्दौली उ. प्र.
9986058503
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