#JaunpurLive : पूर्वांचल की प्रमुख शक्तिपीठों में है मां मैंहर देवी का मंदिर

  • मां के आदेश पर ही दूसरे तल पर स्थापित हुई थी मां मैंहर की प्रतिमा
अंकित जायसवाल
जौनपुर।
भगवान शिव ने कहा था कि द्वापर के अंत में और कलयुग के आरम्भ में कलह का युग शुरु होगा। जिससे लोगों की धन सम्पति, सुख-समृद्धि, शांति छीनने लगेगी लेकिन जो भी व्यक्ति आदिशक्ति देवी पार्वती की प्रतिरुप देवी शारदा के शरण में आ जाएगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ उसके जीवन में सुख समृद्धि धन सम्पदा विद्या, आरोग्य, शांति, सौंदर्य सबकुछ प्राप्त होगा।
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प्राचीन शास्त्रों के अनुसार संसार के कल्याण के लिए भगवान भोलेनाथ, मां पार्वती के साथ कैलाश पर्व पर विराजमान थे उसी समय देवताओं के द्वारा पूछे गये प्रश्न के जवाब में उन्होंने उक्त बातें कही थी। जिले में मैंहर देवी के मंदिर की स्थापना भी ऐसे ही घटनाक्रम के साथ हुई थी। जब जिले के ही निवासी राधेश्याम गुप्त के दोनों कानों के सुनने की शक्ति समाप्त हो गयी। उस समय के चिकित्सकों द्वारा काफी प्रयास के बाद भी उनके कानों की शक्ति वापस नहीं हुई तो उन्होंने शास्त्रों से मिले ज्ञान के अनुसार मां मैंहर देवी की शरण ली और दर्शन के लिए सतना मध्यप्रदेश पहुंच गये जहां उन्होंने मां के चरणों में अपनी अर्जी डाल दी और कुछ ही समय में उनके दोनों कानों की शक्ति पुन: वापस आ गयी और वायदे के मुताबिक राधेश्याम ने नगर के दक्षिणी छोर स्थित मोहल्ला परमानतपुर में मां मैंहर देवी के मंदिर का निर्माण कार्य शुरु किया लेकिन इसी समय उन्हें बार-बार स्वप्न में मां के दर्शन होने लगे जिसमें मां उन्हें आभास कराती थी कि मैं पहाड़ों की ऊंचाई पर रहनों वाली और तू मुझे जमीन पर स्थापित करा रहा हैं। जिस पर इन्होंने जनपद में पहाड़ न होने की बात कही तो मां ने दूसरे तल पर स्वयं के स्थापित होने की मन्नत स्वीकार कर ली और कुछ ही दिनों में एक भव्य मैंहर देवी मंदिर का निर्माण हो गया जिसके बारे में आज भी यह मान्यता हैं कि मध्यप्रदेश के सतना स्थित मैंहर मां के दर्शन का जो पुण्य मिलता है वहीं जनपद में भी प्राप्त होता है। प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंचती है।

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नवरात्र के नौ दिनों में यहां श्रद्धालुओं का अपार जमावड़ा होता है हालांकि जिले की यह अकेली शक्तिपीठ है जहां दर्शन के लिए आने वालों को बहराम भी करना पड़ता है। ऐसा इसलिए कि मां ने स्वयं आने वाले दर्शनार्थियों को बहराम का आदेश दिया था। मंदिर की स्थापना के बाद से ही कई बार ऐसे चमत्कार भी हो चुके है जिससे लोगों की मनोकामनाएं चौखट पर शीश झुकाते ही पूरी हुई। 

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आज पूर्वांचल में इस शक्तिपीठ की न सिर्फ ख्याति है बल्कि पूर्वांचल व अन्य जिलों के दर्शनार्थी यहां अपनी मनोकामनाओं के लिए आते रहते हैं। चौकियां धाम के अलावा जिले की यह ऐसी शक्तिपीठ है जहां प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को हजारों की संख्या में दर्शनार्थी पहुंचते है और दर्शन पाने के लिए घंटों लाइनों में प्रतीक्षारत रहते हैं। इतना ही नहीं स्थापना काल से ही लोग सात जन्मों के बंधन में बंधने के लिए अथवा बंधने के बाद यहां मत्था टेकने जरुर पहुंचते हैं।
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