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मुगल शासनकाल से लेकर आजादी के दो-तीन दशक तक देश ही नहीं विदेशों में जौनपुर के इत्र की सुगंध गमक रही थी। फूलों की खेती, तिल के तेल और इत्र निर्माण में बड़ी संख्या में लगे लोगों की रोजी-रोटी भी चल रही थी। कभी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जिस इत्र पर मोहित हुआ करते थे, अब समय के साथ जिले का वह प्रमुख व्यवसाय मंदा पड़ने लगा है। वहीं डियो व स्प्रे ने परफ्यूम का कारोबार पूरी तरह से बिगाड़ दिया है। सरकार इस पर ध्यान दे तो बेरोजगारी दूर करने के साथ ही राजस्व बढ़ाने का इत्र उद्योग प्रमुख जरिया हो सकता है। अभी हाल में निकाय चुनाव में आए मुख्यमंत्री के घोषणा के बाद लोगों में एक बार फिर से इस उद्योग के परवान चढ़ने की आस जगी है।
एक समय था जब जौनपुर के प्रमुख मार्गो पर इत्र और चमेली के तेल से भरी दुकानें गुलजार हुआ करती थी, पर आज यहां काफी दुकानें बंद हो गई, जो बची वह भी अंतिम समय में चल रही है। जौनपुर का चमेली का तेल भी विश्व प्रसिद्ध है। आज भी कुछ दुकानों पर हमें इस प्राचीन एवं प्रसिद्ध इत्र व तेल की खुशबु मिल जाती है जो सबका मन मोह लेती है। यदि इन कलाओं की प्राचीनता की बात की जाए तो ये तकरीबन सल्तनत काल तक जाती हैं जो कि जौनपुर का स्वर्ण युग माना जाता है। मशीनीकरण व सेंथेटिक इत्र आने से देशी इतर का बाजार टूट सा गया है। प्राचीन तकनीक से इत्र बनने में ज्यादा समय व धन लगता है परंतु मशीन की बनी इत्र कुछ रसायनों के सहारे जल्द बन जाती हैं। यहां काम करने वाले पुराने कारीगर के घरों के भी युवा मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में रोजगार की तलाश में पलायन कर गए हैं।
इतिहास :-
इत्र के कारोबार की बात की जाए तो कोतवाली चौराहे पर 1805 में हाजी बक्स एलाही ने एचएम जकरिया नाम से इत्र व तेल की दुकान खोली। वर्तमान में यह मो.यामीन जकरिया व उनके पुत्र मुस्तफा जकरिया देख रहे हैं। यह इस परिवार की सातवीं पीढ़ी है। इनके परिवार के हाफिज जकरिया ने पहले कोलकाता के कालू टोला, सौकत अली रोड पर दो दुकान, फिर बंबई के मोहम्मद अली रोड ¨भडी बाजार, मदनपुरा मुंबई सेंट्रल में दो दुकान स्थापित कराई। इनके रिश्तेदारों ने यहां से निकलकर सऊदी अरब के जद्दा व मक्का में भी दुकानें खोली। हर जगह जौनपुर के इत्र की खास खुशबू की वजह से इसकी पहचान होने लगी। आज भी यहां कनाडा, आस्ट्रेलिया, इग्लैंड से लोग इत्र लेने आते है। इनके पास ऊद का इत्र, मुस अंबर, मुस, कस्तूरी, अतर प्वाइजन, ब्लू डायमंड, अल शेखा, गूगो बॉस, सीके वन, बेला, चमेली समेत 800 से 900 प्रकार के इत्र है। यह करीब 10 रुपये से शुरु होकर 25 करोड़ रुपये तक आते हैं। बस शौकीनों को इनकी खुशबू पसंद आ जाए तो रुपए देने में नहीं हिचकते । इनकी दुकान का दृश्य पुरानी फिल्म पाकीजा, धोबी घाट में भी दिखाया गया है।
इन क्षेत्रों में होती फूलों की खेती :-नगर में इत्र व तेल के व्यवसाय के लिए पहले कई एकड़ में फूलों की खेती की जाती रही। यह खेती जिले के पचहटिया, चाचकपुर, सैदनपुर, छबीलेपुर तक में होती थी। यहां चमेली, बेल, रातरानी, रजनीगंधा, मोगरा, जन्नतुल फिरदौर, मजमुआ आदि के फूल होते थे। पहले जिले में 50 से 60 कारखाने हुआ करते थे। यह कारखाने मुल्ला टोले, मधारेटोला, बलुआ घाट, रुहट्टा, ओलन्दगंज के आस-पास थे। अब इक्का-दुक्का कारखाने ही चालू हाल में है।
तब जगी थी आस :-
-टीडी कालेज में वर्ष 1956 में प्रदर्शनी लगाई गई थी। इसका उद् घाटन करने पहुंचे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू को एचएम जकरिया फर्म के संचालक हाजी मोहम्मद इदरीस ने अतरदान व गुलाब का फूल दिया था। उस कार्यक्रम में इतर की सबसे खूबसूरत दुकान होने के कारण नेहरू ने मो.इदरीस को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया था।
-वर्ष 2002 में तत्कालीन डीएम राजन शुक्ला ने कृषि भवन में आयोजित कार्यक्रम में पुराने उद्योग धंधों को ¨जदा रखने वालों को सम्मानित किया था। इसमें मोहम्मद यामीन जकरिया भी सम्मानित हुए थे। उन्होंने वादा किया था कि उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।
जब राष्ट्रपति मंगाते थे चमेली का तेल
:-जौनपुर के विश्वप्रसिद्ध चमेली के तेल को भारत के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन भी मंगाया करते थे। उन्हें सिपाह स्थित एचएम अयूम एचएम जकरिया की दुकान से तेल भेजा जाता था। बलुआघाट निवासी मोहम्मद यामीन की माने तो जाकिर हुसैन को बचपन से ही जौनपुर के चमेली का तेल पसंद था। ऐसे में शुरू से ही वह जौनपुर के चमेली का तेल प्रयोग करते थे
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